ऐ सफर….
तू जिंदगिमे कूछ इस तरह
घुल गया है की….
तुझे मिले बिना.,…
दिन की शुरुवात ही नहीं होती ..
अलगा होने की बस मुराद
कितने दिनोसे..
निजाद मिले मुझे बस…
इस तन्हाई से….
उम्मीदोका दामन न छोडा कभी
वो एक दीन आयेगा तभी..
मेरे लिये क्या सही है,और क्या बेहतर …
बस अपनी अनंतकृपा रखना हे ईश्वर!!!!!
Kवीणा